12 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि जयदेव द्वारा रचित 'गीत गोविंद' संस्कृत भाषा में लिखी गई एक प्रसिद्ध काव्यकृति है। इसमें कृष्ण, राधा और वृन्दावन की गोपियों के बीच संबंधों तथा राधा-कृष्ण के प्रेम, विरह और पुनर्मिलन का वर्णन है। इस प्रबंध काव्य में 12 सर्ग (अध्याय) और 72 श्लोक (सर्वांगसुंदरी टीका में 77 श्लोक) हैं। 'गीत गोविंद' एक भक्ति और प्रेम से परिपूर्ण रचना है जिसने भारतीय संस्कृति और कला को बहुत प्रभावित किया है। जयदेव बंगाल के अंतिम हिंदू राजा लक्ष्मण सेन की राज्य- सभा को अलंकृत करते थे। जयदेव, उत्कल राज्य यानि ओडिशा के गजपति राजाओं के समकालीन थे। जानकारी मिलती है कि जयदेव के पिता का नाम भोजदेव था, पर जब वे बहुत छोटे थे तभी माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वे पुरी आकर रहने लगे। ऐसा भी जाता है कि जयदेव जगन्नाथ जी के दर्शन करने पुरी जा रहे थे। उसी यात्रा के दौरान उनहें 'गीत गोविन्द' की रचना की प्रेरणा मिली। कहते हैं- पुरुषोत्तम क्षेत्र पहुंचकर उन्होंने जगन्नाथ का दर्शन किया। एक विरक्त संन्यासी की तरह वृक्ष के नीचे रहकर भगवान का भजन-कीर्तन करने लगे। उनके वैराग्य से प्रेरित होकर, वहाँ अन्य बड़े संत-महात्माओं का सत्संग होने लगा। फिर एक जगन्नाथ भक्त ने प्रभु की प्रेरणा से अपनी कन्या पद्मावती का विवाह जयदेव से कर दिया। वह गृहस्थ होकर भी संत का जीवन जीते रहे। जयदेव ने गीतगोविन्द के अलावा 'रतिमंजरी' की रचना की। ‘भक्तमाल’ के लेखक नाभादास ने ब्रजभाषा में जयदेव की प्रशंसा करते हुए लिखा है-
कवि जयदेव, कवियों में सम्राट हैं, जबकि अन्य कवि छोटे राज्यों के शासकों के समान हैं। तीनों लोकों में उनके ‘गीत गोविन्द’ की आभा फैल रही है। यह रचना काम-विज्ञान, काव्य, नवरस तथा प्रेम की आनंदमयी कला का भंडार है, जो उनके अष्टपदों का अध्ययन करता है, उसकी बुद्धि की वृद्धि होती है। राधा के प्रेमी कृष्ण उन्हें सुनकर प्रसन्न होते हैं और अवश्य ही उस स्थान पर आते हैं, जहां ये गीत गाए जाते हैं। जयदेव वह सूर्य हैं जो कमलवत नारी, पद्मावती को सुख की प्राप्ति कराते हैं। वे संतरूपी कमल-समूह के लिए भी सूर्य की भांति हैं। कवि जयदेव कवियों में सम्राट हैं। गीतगोविन्द के प्रथम टीकाकार उदयनाचार्य ने 'भावविभाविनी' टीका लिखी है । जगन्नाथ पुरी के अत्यन्त निकट प्राची के किनारे रहनेवाले उदयनाचार्य जदयदेव के प्रिय मित्र तथा प्रशंसक थे। सन् 1170 से 1198 के मध्य में 'भावविभाविनी' टीका लिखी गयी थी, जिसमें 100 श्लोक हैं। इसकी तीन मातृकाएँ उदयपुर और नागपुर में उपलब्ध हैं। राणा कुंभा, जिन्हें महाराणा कुंभकर्ण के नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ के शासक थे, जो वर्तमान राजस्थान का क्षेत्र है। उन्हें कला, वास्तुकला और संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के साथ-साथ उनकी सैन्य विजयों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने जयदेव के गीतगोविंद पर एक टीका लिखी थी।

गीत गोविन्द के कुछ पदों का भावानुवाद आरा (बिहार) में रहने वाली लेखिका व प्रसिद्ध स्त्री रोग चिकित्सक डॉ मालती श्रीवास्तव ने किया है। उनमें से पाँच गीत यहाँ प्रस्तुत हैं
सुन चारूशीले
सुन चारूशीले, सुन चारूशीले
आ जा तेरे संग हम भी तो जी लें
हर पल लगे तू नार नवेली
संग तेरे हैं सखियाँ सहेली
आ जा अकेली तू क्यों शरमाये
सुन चारूशीले …
तुम हो शृंगार, तुम्हीं हो आभूषण
मेरे लिए तो तुम ही हो जीवन
मन को भाए तेरे बैन रसीले
सुन चारूशीले …
चंचल है चितवन जैसे हो खंजन
पाकर तुम्हें पुलकित है तन मन
मन को लुभाए तेरे नैन नीले - नीले
सुन चारूशीले …
रूप निखर कर चन्द्र लजाए
वेणी खुले तो घटा छा जाए
चरणों की धूली से सृष्टि रचाए
सुन चारूशीले …
रूठो न हमसे जो चाहे सजा दो
अधरों से आ के अमृत बरसा दो
बोल तेरे हैं मधुर रसीले
सुन चारूशीले …
लवंग लता
ललित लवंग लता की देखो
सुंदर काली सुहाए
चले बसंती बयार सुगंधित
मन बेसुध हो जाए
ललित लवंग …
चंदन चर्चित नील कलेवर
केसर तिलक लगाए
बांसुरी बैठ बजाए मोहन
सबके मन को भाए
मोहित है सारी ब्रजनगरी
प्रेम मुदित मन गाए
कोई बैठ मुख चन्द्र निहारे
कोई मृदंग बजाए
ललित लवंग …
यमुना तट पर खेले सखियाँ
तरु तमाल के नीचे
कोई चाहे उनको छू ले
कोई पीतांबर खींचे
भामिनी तू क्यों रूठ के बैठी
तू काहे नहीं जाए
वंशी जब भी बजाये छलिया
राधा राधा गाए
ललित लवंग …
सखी हे मन भावे
सखी हे मन भावे कृष्ण कन्हाई
मन हर लिनि मुरली सुना के
मधुर - मधुर कछु गाई
सखी हे …
नव किसलय से भरी मांग मेरी
पाँव माहवार लगाई
रूप निखर कर फूंके न बंसी
हृदय से लिनि लगाई
सखी हे …
लिपट पड़ी मैं अमर बेल सी
लोक लाज भुलाई
सखी हे …
डूबी चकित चित्त प्रेम सरोवर
तन मन सुधी बिसराई
सखी हे …
वेणी श्रृंगार
वेणी मेरी बाँध दो कान्हा
लट मेरी सुलझा दो
स्वेद आर्द्र कुरंग छवि भई
उज्जवल शुभ्र बना दो
वेणी मेरी,,,
प्रणय अंकित उर पाटिल रंजित
चंदन लेप लगा दो
दो संवार मुख ललित तिलक से
भाल पे बिंदी लगा दो
वेणी मेरी...
खिसक परे बाजूबंद कंगना
प्रात भए कैसे जाऊं अंगना
निज कर सरोज सजाओ मोहन
नूपुर मेरी पहना दो
वेणी मेरी...
पूछेंगी सब सखियां मेरी
कहां गई मणि कुंडल तेरी
कुंडल मेरी ढूंढ दो कान्हा
कानों में पहिरा दो
वेणी मेरी...
मातु यशोदा देंगी ताना
रात नहीं घर आए कान्हा
गईया उनकी चरा दो कान्हा
बांसुरी मधुर बजा दो
वेणी मेरी...
सुंदर है श्यामा छवि तेरी
नयन भये जैसे चंद्र चकोरी
सागर मंथन से निकली तू
मुझे लगे अमृत से भी प्यारी
वेणी तेरी सजा दूं राधा
बांध के अपने प्रीत की डोरी
वेणी मेरी...
धीरे-धीरे यमुना तीरे
धीरे - धीरे यमुना तीरे पवन चले पुरवाई
चलो सखी उनसे मिल कर आएं
खड़े हैं कृष्ण कन्हाई
धीरे - धीरे …
भाल पे चंदन कान में कुंडल
कपोल पे है अरुणाई
चलो सखी उनसे मिल कर आए
कैसी वेणु मधुर बजाई
धीरे - धीरे …
श्यामल गात पीत बसन है
सुंदर भुजा कमल से नयन है
देख के उनकी अलौकिक शोभा
मन परब सा हुई जाई
धीरे - धीरे …
मालती लता की बनी है मंडप
आम पे मंजर आई
चलो सखी उनको देख के आए
कैसी मोहिनी रूप बनाई
धीरे - धीरे …
नुपुर की ध्वनि पायल की रुनझुन
कछु नहीं आज सुहाई
चलो सखी इनको उतार चले
अब मिलन की बेला आई
धीरे - धीरे …
कूजत पंछी शुक सारिका
कुहू कुहू कोयल गाये
है तेरे अभिसार की बेला
कान्हा लौट न जाए
धीरे - धीरे …
डॉ.
मालती श्रीवास्तव
कवि, कहानीकार व चिकित्साकर्मी
जन्म
2 फ़रवरी,1960
आरा, भोजपुर (बिहार) में। प्रारंभ
से
इंटरमीडिएट
तक
की
पढ़ाई
आरा
में, फिर
श्रीकृष्ण
मेडिकल
कॉलेज,
मुज़फ़्फ़रपुर
से
एम. बी.बी.एस
।
इग्नू
से
मातृत्व
एवम्
शिशु
स्वास्थ्य
में
स्नातकोत्तर
डिप्लोमा
।
स्त्री
एवं
प्रसूति
रोग
विशेषज्ञ
।
पढ़ाई
के
उपरांत
मेडिकल
प्रैक्टिस
की
शुरुआत
सन् 1990 से
आरा
जैसे
शहर
से
स्वतंत्र
रूप
से किया।
आरा
के
अलावा
डुमरांव
जैसे
कस्बाई
शहर
को
भी
अपना
कार्य
क्षेत्र
बनाया। इसके पीछे
कहीं
न
कहीं
ग्रामीण
क्षेत्रों
से
संपर्क
कर
चिकित्सा
को
सामान्य,
उपेक्षित,
वंचितों
से
जोड़ना
था
।
इस
दिशा
में 35 वर्षों
से
अबाध
रूप
से
सक्रिय हैं
।
इनके
लिए
चिकित्सा
कार्य
केवल
गुजर
- बसर
का
माध्यम
नहीं
है, चिकित्सा
को
समाज
से
जोड़ने
की
दिशा
में
एक
प्रतिबद्ध
कदम
है
।
सन्
2006 से
स्त्री
स्वास्थ्य
संबंधित
एनजीओ
‘जननी’
जैसी संस्था
से
जुड़कर
क़स्बा
और
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
स्वास्थ्य
के
प्रति
सचेतन, जागरूकता
की
दिशा
में
लंबे
समय
से
प्रतिबद्ध
रूप
से
कार्यरत
हैं। परिवार
नियोजन
जैसी
योजना
को
सफल
और
इसके
प्रति
लोगों
को
सचेत
करने
के
लिए
भोजपुर
ज़िले
के
गाँवों, तहसीलों
में
जाकर
कैम्प
लगाने
और
इसे
व्यापकता
देने
के
अभियान
में
सम्मिलित
हैं। स्टेट
हेल्थ
सोसाइटी, बिहार
द्वारा
फ़ैमिली
प्लानिंग
सेवा
के
लिए
कई
बार
उत्कृष्ट
योगदान
के
लिए
सम्मानित
व पुरस्कृत
।
साहित्य
के
प्रति
रुचि
बचपन
से
हैं
।साहित्यिक
पत्र
- पत्रिकाओं
को
पढ़ने
से
लिखने
के
प्रति
अभिरुचि
जगी
जो
डायरी,
कहानी
लेखन
के
रूप
में
अभिव्यक्त
हुई
।
इंटरमीडिएट
के
समय
पहली
कहानी ‘अंधा
कुआँ’ लिखा जिसका
आरा
के
साहित्यिक
जगत
में
काफ़ी
चर्चा
रही। पटना,
आकाशवाणी
से
भी
प्रसारित
हुई। इनके
लिए
लेखन
जितना
सृजनात्मक
है, चिकित्सा
कार्य
भी
उतना
ही
रचनात्मक।
अब
तक
तीन
किताबें
प्रकाशित
और
साहित्यिक
जगत
में
चर्चित। सन् 2024 में प्रबंध
काव्य ‘नमामि
रामवल्लभा’, सन् 2025 में
उपन्यास ‘प्रतिकामनी’
और
काव्य
संग्रह ‘पाथेय’ प्रकाशित। चिकित्सा
कार्यों
में
व्यस्तता
बढ़ने
के
कारण
कई
वर्षों
लेखन
बाधित
रहा
लेकिन
फिर
से
सक्रिय
हो
गई हैं। स्त्री
और
विभिन्न
सामाजिक
मुद्दों
पर
कहानी, कविता, उपन्यास
लिख
रही
हैं।
सम्प्रति
: आरा
में
मेडिकल
प्रैक्टिसनर
।
संपर्क
: srivastavamalti@gmail.com
भावानुवाद प्रशंसनीय । बधाई !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना है।भाव उत्कृष्ट है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंMesmerizing bhakti creations for Lord Krishna.
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी में कृष्ण की भक्ति और प्रेम की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है
जवाब देंहटाएंIt is very good, it touches the heart.
जवाब देंहटाएंKuhbsooat Rachna.Aap ke new qualities hum naan pae.Best wishes to a promising versatile personality
जवाब देंहटाएंइन कविताओं को पढ़कर लगता है, जयदेव आज भी समसामयिक है। बधाई उत्कृष्ट भावानुवाद के लिए ।
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