प्रेम में डूबना
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डूब रहा हूँ किंतु प्रेम में
नदी प्रेम की है,
जल की नहीं;
जो डूबेगा प्रेम में
वो बुड़ेगा नहीं,
कुछ दूर जाकर तिर जाएगा।
प्रेम में डूबना भी
उतराना है।
प्रेम में डूबे हुए
नदी में नहीं डूबते,
और जो प्रेम में नहीं डूबते
कभी भी नहीं तिरते!
समुंदर की रेत
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छुओ मत उसे सिर्फ़ देखो
वह समुंदर की रेत जैसी है
उसे छुओगे तो खोओगे
उसे एहसास करो
कि एक दिन इस रेत से
एक मूर्ति बनेगी
एक मूर्ति
जिससे लहरें टकराएंगी
और वापस समुंदर में लौट जाएंगी
छेड़ो मत उसे
छोड़ दो
वह एक नई आकृति बनाएगी
लहरें आएंगी आकर मिटाएंगी
किंतु वह बार - बार
अपने अस्तित्व से तुमको सजाएगी
ऊपर वाला
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छोड़ दो सब छोड़ दो
कुछ नहीं ऐसा जिसके लिए
दांव पर लगाया जाए जीवन
सब है नश्वर
कोई नहीं जो कह सके
मैं हूँ अमर
ऊपर वाले को इससे छूट है
क्योंकि यह शब्द अपने आप में
एक बहुत बड़ा झूठ है
उदास दिनों की दास्तां
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सच्चा साथी वही है
जो उदास दिनों की दास्तां भी सुन सके
तुम कुछ और बनना या न बनना
एक अच्छा सुननेवाला ज़रूर बनना
बहुत सारे लोग
सूख जाते हैं पेड़ों के जैसे
और वह भी इसलिए
कि कोई नहीं होता उनके पास
जिसे वे सुना सकें अपनी दास्तां।
सही शिक्षा
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बहुत पढ़-लिख लेने के बावजूद भी
अगर मानवीयता नाम की चीज़ से दूरी रही
तो ये कहने में गुरेज़ नहीं
कि अभी कुछ और बाक़ी है
पहाड़ से निकलती है नदी
धरती पर खड़ा है पहाड़
और नदी से मिलता है जीवन
सब एक दूसरे के पूरक हैं
सभी को है एक दूसरे की ज़रूरत
शिक्षा शब्द के साथ
सही नाम के विशेषण का होना ज़रूरी है
नहीं तो अ या कु जुड़ कर
उसे कर देंगे अशिक्षा या कुशिक्षा।
ठहरना
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सब भूल कर आगे बढ़ने से बेहतर है
सब याद रख कर ठहरना
जो ठहरते हैं
वही कुछ नया रचते हैं
रेत के कण से मकान नहीं बनते
रेत के कण से रेगिस्तान बनते हैं
जो ठहरते हैं
वे अपना नया वज़ूद गढ़ते हैं।
नौकरी
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नौकरी का क्या
कोई भी की जा सकती है
पहले लगे तो सही
हाँ तवज्जो देना हो तो
डाकख़ाने की नौकरी को दूँगा
अदालत की नौकरी के बरक्स
डाकिया बनना पसंद करूँगा
अपना यार हासिल न हुआ तो क्या
किसी और का ख़त पहुँचा कर
सुकून से सो तो सकूँगा।
चाहना
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बेशक एक फूल को चाहो
मुलायम पत्तियों को
और तितलियों को भी
किंतु उन्हें भी तो चाहो
जो इनमें से कोई भी नहीं
उन्हें भी चाहने की ज़रूरत है
जिन्हें कोई नहीं चाहता
किसी को भी नहीं दिखती
जिनके अंदर की छिपी सुन्दरता...।
कार्तिकेय नये कवि हैं। हर नया कवि अपने नये अनुभवों और नये समय के साथ कविता में दाख़िल होता है और धीरे-धीरे अपना नया रास्ता गढ़ता है। देखने के नये कोण को संपन्न करता है। कार्तिकेय हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, तेलंगाना से हिन्दी में पी-एच. डी. कर रहे हैं। उनसे इस नंबर पर बात हो सकती है - 6388366322
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