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कार्तिकेय शुक्ल की कविताएँ

 

प्रेम में डूबना 

_________________
डूब रहा हूँ किंतु प्रेम में
नदी प्रेम की है, 
जल की नहीं;

जो डूबेगा प्रेम में 
वो बुड़ेगा नहीं,
कुछ दूर जाकर तिर जाएगा।

प्रेम में डूबना भी
उतराना है।

प्रेम में डूबे हुए 
नदी में नहीं डूबते,
और जो प्रेम में नहीं डूबते
कभी भी नहीं तिरते!


समुंदर की रेत

__________________
छुओ मत उसे सिर्फ़ देखो
वह समुंदर की रेत जैसी है 

उसे छुओगे तो खोओगे 
उसे एहसास करो
कि एक दिन इस रेत से
एक मूर्ति बनेगी

एक मूर्ति
जिससे लहरें टकराएंगी 
और वापस समुंदर में लौट जाएंगी

छेड़ो मत उसे
छोड़ दो
वह एक नई आकृति बनाएगी

लहरें आएंगी आकर मिटाएंगी 
किंतु वह बार - बार
अपने अस्तित्व से तुमको सजाएगी


ऊपर वाला

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छोड़ दो सब छोड़ दो
कुछ नहीं ऐसा जिसके लिए 
दांव पर लगाया जाए जीवन

सब है नश्वर 
कोई नहीं जो कह सके
मैं हूँ अमर

ऊपर वाले को इससे छूट है
क्योंकि यह शब्द अपने आप में 
एक बहुत बड़ा झूठ है


उदास दिनों की दास्तां 

________________
सच्चा साथी वही है 
जो उदास दिनों की दास्तां भी सुन सके

तुम कुछ और बनना या न बनना
एक अच्छा सुननेवाला ज़रूर बनना

बहुत सारे लोग
सूख जाते हैं पेड़ों के जैसे
और वह भी इसलिए
कि कोई नहीं होता उनके पास
जिसे वे सुना सकें अपनी दास्तां।


सही शिक्षा

______________________
बहुत पढ़-लिख लेने के बावजूद भी
अगर मानवीयता नाम की चीज़ से दूरी रही
तो ये कहने में गुरेज़ नहीं 
कि अभी कुछ और बाक़ी है 

पहाड़ से निकलती है नदी
धरती पर खड़ा है पहाड़
और नदी से मिलता है जीवन

सब एक दूसरे के पूरक हैं 
सभी को है एक दूसरे की ज़रूरत 

शिक्षा शब्द के साथ 
सही नाम के विशेषण का होना ज़रूरी है 
नहीं तो अ या कु जुड़ कर 
उसे कर देंगे अशिक्षा या कुशिक्षा।


ठहरना 

_____________________
सब भूल कर आगे बढ़ने से बेहतर है 
सब याद रख कर ठहरना

जो ठहरते हैं 
वही कुछ नया रचते हैं 

रेत के कण से मकान नहीं बनते
रेत के कण से रेगिस्तान बनते हैं
जो ठहरते हैं 
वे अपना नया वज़ूद गढ़ते हैं।


नौकरी

__________________
नौकरी का क्या 
कोई भी की जा सकती है 
पहले लगे तो सही

हाँ तवज्जो देना हो तो 
डाकख़ाने की नौकरी को दूँगा 
अदालत की नौकरी के बरक्स 
डाकिया बनना पसंद करूँगा

अपना यार हासिल न हुआ तो क्या 
किसी और का ख़त पहुँचा कर 
सुकून से सो तो सकूँगा।


चाहना

_____________________
बेशक एक फूल को चाहो 
मुलायम पत्तियों को 
और तितलियों को भी

किंतु उन्हें भी तो चाहो 
जो इनमें से कोई भी नहीं

उन्हें भी चाहने की ज़रूरत है 
जिन्हें कोई नहीं चाहता

किसी को भी नहीं दिखती 
जिनके अंदर की छिपी सुन्दरता...।





कार्तिकेय नये कवि हैं। हर नया कवि अपने नये अनुभवों और नये समय के साथ कविता में दाख़िल होता है और धीरे-धीरे अपना नया रास्ता गढ़ता है। देखने के नये कोण को संपन्न करता है। कार्तिकेय हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, तेलंगाना से हिन्दी में पी-एच. डी. कर रहे हैं। उनसे इस नंबर पर बात हो सकती है - 6388366322
 

 





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